Sunday, September 12, 2010

एक सच

क्या कहानी, क्या निशानी?

रचता कोई और है रचना

वही कहानीकार है

हम सब निभाते है किरदार अपना

हम सब ही सच्चे कलाकार है।

क्या सुख, क्या दुख?

ये सब कहानी के हिस्से है,

खुदा का शुक्र अदा करें हम सब

सब के अपने-अपने किस्से है।

क्या मिलन, क्या जुदाई?

रब ने ही यह सब बनाई

हँसते है तो रोना भी पड़ेगा

पाते है तो खोना भी पड़ेगा

फिक्रमंद न हों हम सब

यही दुख का कारण है

न लेके कुछ आए थे

न लेके कुछ जायेगें

वफा को चुन ले हम सब

अंतत: यही साथ जायेगे

अपना क्या, पराया क्या?

मन की मलीनता है यह सब

एक दिन जाना होगा इस जहाँ से

फिर वफा ही काम आयेगे

एक ज्योत तो जलाए

कब्र में जाने से पहले,

अपने ईमान को रौशन कर जाए।

-अजय कु मार

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