Sunday, September 12, 2010

एक सच

क्या कहानी, क्या निशानी?

रचता कोई और है रचना

वही कहानीकार है

हम सब निभाते है किरदार अपना

हम सब ही सच्चे कलाकार है।

क्या सुख, क्या दुख?

ये सब कहानी के हिस्से है,

खुदा का शुक्र अदा करें हम सब

सब के अपने-अपने किस्से है।

क्या मिलन, क्या जुदाई?

रब ने ही यह सब बनाई

हँसते है तो रोना भी पड़ेगा

पाते है तो खोना भी पड़ेगा

फिक्रमंद न हों हम सब

यही दुख का कारण है

न लेके कुछ आए थे

न लेके कुछ जायेगें

वफा को चुन ले हम सब

अंतत: यही साथ जायेगे

अपना क्या, पराया क्या?

मन की मलीनता है यह सब

एक दिन जाना होगा इस जहाँ से

फिर वफा ही काम आयेगे

एक ज्योत तो जलाए

कब्र में जाने से पहले,

अपने ईमान को रौशन कर जाए।

-अजय कु मार

Saturday, September 4, 2010

इंतजार

न पाती ना कोई खबरीया
रूठ क्यो गए वो मेरे सावरियाँ
नयना आस मे तेरी हर पल
आ भी जाओ तु वो बावडियाँ

सुनी-सुनी है मेरी डगरिया
कब आओगे सजना तु दुअरिया
झुले सुने तेरे बिन
सुनी है पनघट किनरिया
यादो मे हर वो रैना
आ भी पिया सावरियाँ

बिन कंगन सुनी मेरी कलईयाँ
बाहो मे तेरी रहती थी हर पल सईयाँ
थाम के तेरी बहिईयाँ
कैसे भुल जाऊँ वो अंगराईया
बीत रहे है पल-पल सजनवा
आ भी जा पहना दो कगनवाँ

खो गई है जुड़े मेरी
जुल्फ खुली है इतजार मे तेरी
तड़प रही है तेरी सजनियाँ
नयना रूठ गई हमसे तेरे बिन
भर जाती है नयन गगरियाँ
न आती है चैन सावरियाँ
आ भी जा तु ओ बावरियाँ

बढ रही है प्यास सजनवा
रूठ गई है हमसे निदियाँ
तड़प रही हु तेरी याद मे
भूल गई हु लगाना बिदियाँ
आ भर दो मेरी माँग सिन्दुरी
पिया जी बिन तेरे मै हु अधुरी

आ भी जा ओ निर्मोही
सुना-सुना मेरा आचल
नीर बन बह गये मेरे काजल
कैसे कह दु पिया जग से मै
हो गई हु तेरे प्रीत मे पागल